दिल्ली – देश की सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 (Order VII Rule 11 CPC) के तहत वाद खारिज करने के लिए दायर आवेदन में ‘रेस जुडिकाटा’ की दलील पर फैसला नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि रेस जुडिकाटा ऐसा मुद्दा है, जिस पर सुनवाई के दौरान फैसला किया जाना है और वाद को खारिज करने के आवेदन में इसका संक्षेप में फैसला नहीं किया जा सकता। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ मद्रास हाईकोर्ट का आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रेस जुडिकाटा के आधार पर वाद को खारिज करने को मंजूरी दी गई। हाईकोर्ट का आदेश के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने कहा कि “रेस जुडिकाटा की आपत्ति को आदेश VII नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया सहिता के तहत मुकदमे पर रोक लगाने के लिए नहीं लिया जा सकता।”
खंडपीठ ने केशव सूद बनाम कीर्ति प्रदीप सूद (2023) के हालिया मामले का उदाहरण का हवाला दिया। इसके अलावा, वी. राजेश्वरी बनाम टी.सी. सरवनबावा (2004) 1 एससीसी 551 के निर्णय का भी उल्लेख किया गया, जिसमें कहा गया कि वाद के कारणों में समानता की पहचान करना सुनवाई का विषय होना चाहिए, जहां पहले मुकदमे के दस्तावेजों का अध्ययन और विश्लेषण किया जाता है।
न्यायालय ने कहा, “केवल वाद को खारिज करने की मांग करने वाले आवेदन में किए गए दावों के आधार पर रेस जुडिकाटा का निर्णय नहीं लिया जा सकता।”
अपील स्वीकार करते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की: “यद्यपि हम स्पष्ट करते हैं कि हमने इस प्रश्न पर कोई राय व्यक्त नहीं की है कि क्या दिनांक 29.07.1997 के ओ.एस. संख्या 298/96 में एकपक्षीय डिक्री वर्तमान मुकदमे को छोड़कर रेस ज्यूडिकेटा के रूप में कार्य करेगी या नहीं, हम मानते हैं कि इस प्रश्न की जांच आदेश VII, नियम 11 सीपीसी के तहत अपीलकर्ता द्वारा वादपत्र में एकपक्षीय डिक्री के बारे में किए गए विशिष्ट कथनों, उक्त लेनदेन से जुड़ी परिस्थितियों और मुकदमे में घोषणा और परिणामी अनुतोष के लिए प्रार्थना के संदर्भ में, तय नहीं की जा सकती है।”
Case : Pandurangan v. T. Jayarama Chettiar and another
सिविल अपील – 7743/25