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हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 14, विवाह के एक वर्ष के अंतराल में तलाक याचिका पर प्रतिबंध ! कुछ असाधारण परिस्थितियां भी, जिनका किया जा सकता है इस्तेमाल ।

दिल्ली- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) विवाह को एक पवित्र और महत्वपूर्ण संस्था (Sacred and Significant Institution) मानता है। इसलिए, यह विवाहों को अनावश्यक रूप से जल्दी तोड़ने से रोकने का प्रयास करता है।

धारा 14 (Section 14) इसी सिद्धांत पर आधारित है, जो विवाह के एक वर्ष के भीतर (Within One Year) तलाक के लिए याचिका दायर करने पर प्रतिबंध (Restriction) लगाती है। यह प्रावधान जोड़ों को अपने मतभेदों (Differences) को सुलझाने और अपने वैवाहिक बंधन (Marital Bond) को मजबूत करने के लिए पर्याप्त समय देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। Also Read – Sales of Goods Act, 1930 की धारा 66 : बचत खंड और अनुप्रयोग की सीमाएं 14. विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक के लिए कोई याचिका प्रस्तुत नहीं की जाएगी (No petition for divorce to be presented within one year of marriage)

(1) इस अधिनियम में किसी भी बात के होते हुए भी, किसी भी न्यायालय के लिए तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) द्वारा विवाह के विघटन (Dissolution) के लिए किसी भी याचिका को स्वीकार करना सक्षम (Competent) नहीं होगा, जब तक याचिका प्रस्तुत करने की तारीख को विवाह की तारीख से एक वर्ष बीत न गया हो ।

वह परिस्थितियां जिन में एक वर्ष बीतने के पूर्व याचिका लगाई जा सकती है ।

Providा that the court may, upon application made to it in accordance with such rules as may be made by the High Court in that behalf, allow a petition to be presented before one year has elapsed since the date of the marriage on the ground that the case is one of exceptional hardship to the petitioner or of exceptional depravity on the part of the respondent, but if it appears to the court at the hearing of the petition that the petitioner obtained leave to present the petition by any misrepresentation or concealment of the nature of the case, the court may, if it pronounces a decree, do so subject to the condition that the decree shall not have effect until after the expiry of one year from the date of the marriage or may dismiss the petition without prejudice to any petition which may be brought after expiration of the said one year upon the same or substantially the same facts as those alleged in support of the petition so dismissed.) स्पष्टीकरण: यह परंतुक (Proviso) कठोर नियम का अपवाद (Exception) प्रदान करता है। कुछ असाधारण परिस्थितियों (Exceptional Circumstances) में, न्यायालय एक वर्ष की अवधि समाप्त होने से पहले भी तलाक की याचिका दायर करने की अनुमति दे सकता है। ये परिस्थितियाँ हैं: 1. याचिकाकर्ता के लिए असाधारण कठिनाई (Exceptional Hardship to the Petitioner):

इसका मतलब है कि याचिकाकर्ता को विवाह में इतनी गंभीर परेशानी (Severe Trouble) हो रही है कि एक वर्ष तक इंतजार करना उसके लिए अनुचित होगा। 2. प्रतिवादी की ओर से असाधारण दुराचार (Exceptional Depravity on the part of the Respondent): इसका अर्थ है कि दूसरे पक्ष ने ऐसा कोई असाधारण रूप से अनैतिक या दुष्ट आचरण (Immoral or Wicked Conduct) किया है कि विवाह को जारी रखना उचित नहीं है। हालांकि, न्यायालय बहुत सतर्क रहता है। यदि यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता ने अनुमति प्राप्त करने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत (Misrepresented) किया या छिपाया (Concealed), तो न्यायालय डिक्री पारित कर सकता है लेकिन उसे एक वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ही प्रभावी बना सकता है, या याचिका को पूरी तरह से खारिज कर सकता है (बिना किसी पूर्वाग्रह के, जिसका अर्थ है कि याचिकाकर्ता एक वर्ष के बाद फिर से उन्हीं या समान तथ्यों पर याचिका दायर कर सकता है)।

उदाहरण:

• असाधारण कठिनाई: यदि विवाह के एक महीने बाद ही पत्नी को उसके पति द्वारा लगातार शारीरिक हिंसा (Physical Violence) और जानलेवा धमकियों (Life-threatening Threats) का सामना करना पड़ता है, तो वह असाधारण कठिनाई के आधार पर एक वर्ष से पहले तलाक के लिए अनुमति मांग सकती है।

• असाधारण दुराचार: यदि पति विवाह के तुरंत बाद एक जघन्य अपराध (Heinous Crime) में शामिल पाया जाता है और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो पत्नी असाधारण दुराचार के आधार पर एक वर्ष से पहले तलाक के लिए याचिका दायर करने की अनुमति मांग सकती है। महत्वपूर्ण केस लॉ: लकी पॉल बनाम प्रीति पॉल (Lucky Paul v. Preeti Paul), 2011: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने इस मामले में धारा 14 के तहत “असाधारण कठिनाई” और “असाधारण दुराचार” की अवधारणाओं पर चर्चा की। न्यायालय ने जोर दिया कि इन शर्तों को बहुत सख्ती (Strictly) से व्याख्या किया जाना चाहिए और केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों (Rare and Exceptional Cases) में ही एक वर्ष की अवधि को माफ किया जाना चाहिए, क्योंकि अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य सुलह के लिए अवसर प्रदान करना है। (2) विवाह की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति (Expiration of One Year) से पहले तलाक के लिए याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए इस धारा के तहत किसी भी आवेदन का निपटारा (Disposing) करते समय, न्यायालय विवाह के किसी भी बच्चे के हितों (Interests of any Children) और इस सवाल पर ध्यान देगा कि क्या उक्त एक वर्ष की समाप्ति से पहले पक्षों के बीच सुलह की उचित संभावना (Reasonable Probability of Reconciliation) है। (In disposing of any application under this section for leave to present a petition for divorce before the expiration of one year from the date of the marriage, the court shall have regard to the interests of any children of the marriage and to the question whether there is a reasonable probability of a reconciliation between the parties before the expiration of the said one year.)

स्पष्टीकरण: यह उप-धारा न्यायालय को उन कारकों (Factors) पर विचार करने का निर्देश देती है जिन्हें एक वर्ष से पहले तलाक की याचिका दायर करने की अनुमति देते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए।

कुछ असाधारण परिस्थितियों (Exceptional Circumstances) में, न्यायालय एक वर्ष की अवधि समाप्त होने से पहले भी तलाक की याचिका दायर करने की अनुमति दे सकता है। ये परिस्थितियाँ हैं: 1. याचिकाकर्ता के लिए असाधारण कठिनाई (Exceptional Hardship to the Petitioner):

इसका मतलब है कि याचिकाकर्ता को विवाह में इतनी गंभीर परेशानी (Severe Trouble) हो रही है कि एक वर्ष तक इंतजार करना उसके लिए अनुचित होगा। 2. प्रतिवादी की ओर से असाधारण दुराचार (Exceptional Depravity on the part of the Respondent): इसका अर्थ है कि दूसरे पक्ष ने ऐसा कोई असाधारण रूप से अनैतिक या दुष्ट आचरण (Immoral or Wicked Conduct) किया है कि विवाह को जारी रखना उचित नहीं है। हालांकि, न्यायालय बहुत सतर्क रहता है। यदि यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता ने अनुमति प्राप्त करने के लिए तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत (Misrepresented) किया या छिपाया (Concealed), तो न्यायालय डिक्री पारित कर सकता है लेकिन उसे एक वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ही प्रभावी बना सकता है, या याचिका को पूरी तरह से खारिज कर सकता है (बिना किसी पूर्वाग्रह के, जिसका अर्थ है कि याचिकाकर्ता एक वर्ष के बाद फिर से उन्हीं या समान तथ्यों पर याचिका दायर कर सकता है)।

न्यायालय को दो मुख्य बिंदुओं पर विचार करना चाहिए:

  1. बच्चों का हित (Interests of Children): न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि माता-पिता के अलगाव से बच्चों पर पड़ने वाले किसी भी नकारात्मक प्रभाव (Negative Impact) को कम किया जाए।
  2. सुलह की संभावना (Probability of Reconciliation): न्यायालय यह आकलन करेगा कि क्या एक वर्ष की अवधि के भीतर पक्षों के बीच सुलह की कोई वास्तविक संभावना है। यदि कोई संभावना मौजूद है, तो न्यायालय आमतौर पर याचिका दायर करने की अनुमति देने से इनकार कर सकता है। उदाहरण: यदि एक जोड़े के छोटे बच्चे हैं और पति या पत्नी में से कोई एक वर्ष से पहले तलाक चाहता है, तो न्यायालय यह देखेगा कि क्या बच्चों के कल्याण (Welfare) को नुकसान होगा और क्या बच्चों के लिए माता-पिता को सुलह करने का कोई मौका है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 विवाह के पवित्र स्वभाव (Sacred Nature) और उसके स्थायित्व (Permanence) के प्रति कानून के सम्मान को दर्शाती है। यह जोड़ों को जल्दबाजी में तलाक लेने से रोकने के लिए एक सुरक्षा कवच (Safeguard) के रूप में कार्य करती है और उन्हें अपने मतभेदों को सुलझाने का अवसर देती है। हा लांकि, यह उन असाधारण परिस्थितियों को भी पहचानती है जहां एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि अनुचित कठिनाई या अन्याय का कारण बन सकती है, जिससे न्यायालय को ऐसे मामलों में विवेकपूर्ण निर्णय (Discretionary Decision) लेने की अनुमति मिलती है, जबकि बच्चों के हितों और सुलह की संभावना को प्राथमिकता दी जाती है।

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