इंसान की सबसे अच्छी दोस्त उसकी पुस्तके होती है । यह बात हर कहीं देखी और समझी गई है । सोशल साइट पर युवाओं के आइकॉन बने अर्पित की जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही मोड़ आया 9 साल की उम्र से ही उनकी किताबों से दोस्ती हो गई थी। लेकिन स्वामी विवेकानंद की पुस्तक पढ़ने से उनकी जीवन को एक नई दिशा मिल गई
आज अर्पित प्रोफेशनली युवाओं को प्रोफेशनल और पर्सनल समस्याओं का सोशल साइट पर हल देते हैं।
अर्पित बताते हैं कि उनको बचपन से ही पढ़ने का शौक़ था। 9 साल की उम्र से वो कोर्स के साथ अलग अलग तरह की किताबें पढ़ने लगे। 12 साल की उम्र में उन्होंने लेख और कविताएँ भी लिखना शुरु कर दिया। जिसके लिए स्कूल से लेकर अलग अलग संस्थाओं से उन्हें पुरस्कार भी मिले। लेकिन उन्हें जीवन की सही दिशा 15 की उम्र में नरेंद्र कोहली की स्वामी विवेकानंद पर लिखी पुस्तक -तोड़ो कारा तोड़ो- से मिली। इससे जीवन को लेकर उनके सोचने और चीजों को देखने का नज़रिया ही बदल गया। ये उनके लेखन में भी दिखने लगा। ये सिलसिला कॉलेज पूरा होने तक चलता रहा।
जब उन्होंने देखा कि आज का युवा सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय है तो उन्होंने इस प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए अपने विचार युवाओं तक पहुँचाने की कोशिशें शुरू कर दी। वो बताते हैं कि सोशल मीडिया पर उनकी शुरुआत दरअसल साल 2016 में ही हो गई थी। 2016 में इंस्टाग्राम पर उन्होंने अपने विचारों को साझा करना शुरु किया तो महज़ छह महीने में ही उनसे 50 हज़ार से ज़्यादा युवा जुड़ गए। लेकिन असली सक्रियता साल 2018 से शुरू हुई। अपने पेज का नाम उन्होंने इंसानियत के तीन आधार आस्था, साहस और नम्रता को जोड़कर #आसानहै रखा।करीब दो साल में सोशल मीडिया पर उनसे लाखों लोग जुड़ चुके हैं और ये सिलसिला लगातार जारी है।
इंस्टाग्राम एक इंटरएक्टिव प्लेटफ़ार्म भी है तो हज़ारों युवा हर महीने अर्पित से #आसानहै पेज पर अपनी व्यक्तिगत या प्रोफेशनल परेशानियाँ शेयर करते हैं। और मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। अर्पित मानते हैं कि आज का युवा बहुत टैलेंटेड, समर्थ है। युवाओं के पास ना विज़न की कमी है और ना प्रतिभा की। ये युवा अपनी बेशुमार ऊर्जा और उत्साह से हर बाधा को पार कर सकते है और हर नामुमकिन लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें सही मार्गदर्शन और प्रेरणा मिलती रहे तो मंजिल की तरफ उनकी यात्रा थोड़ी आसान हो जाती है।
