
नागचंद्रेश्वर मंदिर, उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे तल पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जो साल में केवल एक बार नागपंचमी के दिन खुलता है। यह मंदिर अपनी विशिष्टता के लिए जाना जाता है, क्योंकि इसमें भगवान शिव और पार्वती, दस फन वाले नाग पर विराजमान हैं, और उनके साथ गणेश, नंदी और अन्य देवी-देवता भी हैं.
माना जाता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता की उपासना के साथ साथ भगवान शिव की पूजा और उनका रुद्राभिषेक करना बहुत ही शुभ माना जाता है. दरअसल, ऐसा करने से जातक कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नागों को भगवान शिव के आभूषण में से एक माना जाता है. वहीं, महाकाल नगरी उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर भी इसी परंपरा का प्रतीक माना जाता है, जो कि साल में केवल एक बार 24 घंटे के लिए नाग पंचमी के दिन खुलता है.
कथा के अनुसार, सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को खुश करने के लिए घोर तपस्या की थी.
सांपों के राजा तक्षक की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था.
मगर इस वरदान को पाने के बावजूद सांपों के राजा तक्षक खुश नहीं थे. उन्होंने भगवान शिव से कहा की वो हमेशा
उनके सानिध्य में ही रहना चाहते हैं. इसलिए, उन्हें महाकाल वन में ही रहने दिया जाए.
भोलेनाथ ने उन्हें महाकाल वन में रहने की अनुमति देते हुए आशीर्वाद भी दिया की उनके
एकांत में विघ्न ना हो, इस वजह से ही साल में एक बार सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही इस मंदिर को खोला जाएगा.
नागचंद्रेश्वर मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:
खुलाने का समय:
यह मंदिर साल में केवल एक दिन, नागपंचमी (श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी) के दिन खुलता है.
महत्व:
मान्यता है कि नागपंचमी के दिन इस मंदिर में दर्शन करने से सर्प दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है.
मूर्ति:
मंदिर में स्थापित भगवान नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है और इसे नेपाल से लाया गया था.
परमार राजा भोज:
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1050 ईस्वी के लगभग परमार राजा भोज ने करवाया था.
सिंधिया परिवार:
बाद में, 1732 में, सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, जिसमें नागचंद्रेश्वर मंदिर भी शामिल था.
तक्षक नाग:
मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा यह भी है कि नागराज तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहां तपस्या की थी और अमरता का वरदान प्राप्त किया था, जिसके बाद से वह यहीं भगवान शिव के साथ निवास करते हैं.
दर्शन:
नागपंचमी के दिन, मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं, जो भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करना चाहते हैं.